Gold Rate: भारतीय बाजार में सोने की कीमतों ने एक नया इतिहास रच दिया है जब पहली बार सोना एक लाख रुपये प्रति दस ग्राम के पार पहुंच गया है। यह वृद्धि न केवल आम उपभोक्ताओं बल्कि अनुभवी निवेशकों को भी आश्चर्यचकित कर देने वाली है। कई महीनों से सोना एक लाख रुपये के आसपास चल रहा था लेकिन अचानक से आई यह तेजी ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। एमसीएक्स पर सोने का उच्चतम स्तर 100,681 रुपये तक पहुंच गया जो इसकी ऐतिहासिक यात्रा में एक मील का पत्थर है।
यह उछाल इतना तेज था कि बाजार विशेषज्ञों की सभी भविष्यवाणियां धरी रह गईं। जो विशेषज्ञ सोने की कीमतों में गिरावट की उम्मीद कर रहे थे वे भी इस अप्रत्याशित वृद्धि से हैरान हैं। सुबह 99,500 रुपये पर खुलने के बाद सोना दिनभर में 100,000 रुपये के पार चला गया और अंततः 100,314 रुपये पर बंद हुआ। यह दिखाता है कि बाजार में सोने की मांग कितनी मजबूत है और निवेशकों का भरोसा इस कीमती धातु पर कितना अटूट है।
मध्य पूर्वी संकट का प्रभाव
सोने की कीमतों में इस अचानक वृद्धि का मुख्य कारण मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव है, विशेषकर इजराइल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष। जब भी दुनिया में राजनीतिक अस्थिरता या युद्ध की स्थिति बनती है तो निवेशक सुरक्षित निवेश की तलाश में सोने की ओर रुख करते हैं। इजराइल के हमले के बाद पूरे मध्य पूर्व में अचानक हलचल मच गई है जिसका सीधा प्रभाव वैश्विक बाजारों पर पड़ा है। यह युद्धी माहौल निवेशकों के मन में डर पैदा करता है और वे अपनी पूंजी को सुरक्षित स्थानों पर लगाना चाहते हैं।
सोना हमेशा से ही अनिश्चितता के समय में एक सुरक्षित आश्रयस्थल माना जाता रहा है। जब शेयर बाजार में गिरावट आती है या मुद्रा की कीमतें घटती-बढ़ती हैं तो सोना एक स्थिर निवेश विकल्प के रूप में सामने आता है। वर्तमान में मध्य पूर्व की स्थिति अत्यधिक नाजुक है और इसके और भी बिगड़ने की संभावनाएं हैं। यदि यह संघर्ष लंबे समय तक चलता रहा या इसमें अन्य देश भी शामिल हो गए तो सोने की कीमतों में और भी तेजी देखने को मिल सकती है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का योगदान
सोने की कीमतों में वृद्धि का दूसरा महत्वपूर्ण कारण अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह संघर्ष वैश्विक बाजारों में अस्थिरता पैदा कर रहा है। अमेरिका लगातार चीन पर नए प्रतिबंध लगा रहा है और व्यापारिक टैरिफ बढ़ा रहा है जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। यह व्यापार युद्ध न केवल इन दो देशों को बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।
जब व्यापारिक संबंधों में अनिश्चितता होती है तो निवेशक जोखिम से बचने के लिए सुरक्षित निवेश विकल्पों की तलाश करते हैं। सोना इस समय सबसे पसंदीदा विकल्प बन जाता है क्योंकि यह मुद्रास्फीति से बचाव प्रदान करता है और आर्थिक अनिश्चितता के दौरान इसकी कीमत आमतौर पर बढ़ती है। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण डॉलर की स्थिति भी प्रभावित होती है जिसका सीधा असर सोने की कीमतों पर पड़ता है। जब डॉलर कमजोर होता है तो सोने की कीमतें बढ़ती हैं।
एमसीएक्स पर सोने का प्रदर्शन
मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया पर सोने ने शानदार प्रदर्शन किया है और पहली बार एक लाख रुपये के महत्वपूर्ण स्तर को पार कर गया है। सुबह 99,500 रुपये पर खुलने के बाद सोने में लगातार तेजी देखी गई और यह 100,681 रुपये के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया। दिन के अंत में सोना 100,314 रुपये पर बंद हुआ जो एक नया रिकॉर्ड है। इससे पहले अगस्त की समाप्ति वाले सोने के वायदा अनुबंध का भाव 99,358 रुपये प्रति दस ग्राम था।
यह वृद्धि दिखाती है कि भारतीय बाजार में सोने की मांग कितनी मजबूत है। त्योहारी सीजन, शादी-विवाह और निवेश सभी कारणों से सोने की मांग बनी रहती है। एमसीएक्स पर अब दो दिन तक बाजार बंद रहने वाला है जिसके बाद देखना होगा कि सोने की कीमतों का रुख क्या रहता है। वैश्विक बाजारों में होने वाली गतिविधियों का प्रभाव भारतीय बाजार पर भी पड़ेगा और सोने की कीमतों की दिशा तय करेगा।
भविष्य में सोने की कीमतों का अनुमान
बाजार विशेषज्ञों और सराफा व्यापारियों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सोने की कीमतों में और भी वृद्धि की संभावना है। सराफा कारोबारी राहुल सोनी के अनुसार मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के कारण अगले दो महीनों में सोने की कीमतें 1 लाख 10 हजार रुपये तक पहुंच सकती हैं। यह भविष्यवाणी इस बात पर आधारित है कि यदि इजराइल-ईरान संघर्ष लंबे समय तक चलता रहा या इसमें अन्य देश भी शामिल हो गए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
डॉलर की कीमतों, कच्चे तेल की दरों और वैश्विक बाजारों पर इस युद्ध का क्या प्रभाव पड़ता है यह भी सोने की कीमतों को प्रभावित करेगा। यदि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा जिससे सोने की मांग और भी बढ़ सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आती तब तक सोना अपनी मजबूत स्थिति बनाए रखेगा। निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे बाजार की गतिविधियों पर नजर रखें और सोच-समझकर निवेश करें।
निवेशकों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव
सोने की कीमतों में यह तेजी निवेशकों और आम उपभोक्ताओं दोनों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर रही है। जिन निवेशकों ने पहले से सोने में निवेश किया हुआ है वे इस वृद्धि से खुश हैं क्योंकि उनकी संपत्ति का मूल्य बढ़ गया है। सोने के ईटीएफ, सोने के सिक्के और आभूषणों में निवेश करने वाले लोगों को अच्छा रिटर्न मिल रहा है। दूसरी ओर जो लोग अभी सोना खरीदना चाहते हैं उनके लिए यह महंगा हो गया है।
आम उपभोक्ताओं के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है क्योंकि त्योहारी सीजन और शादी-विवाह के मौसम में सोने की मांग बढ़ जाती है। एक लाख रुपये प्रति दस ग्राम की दर से सोना खरीदना मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कठिन हो गया है। ज्वेलरी की दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक अब कम मात्रा में सोना खरीद रहे हैं या फिर खरीदारी को स्थगित कर रहे हैं। इससे सराफा कारोबार पर मिश्रित प्रभाव पड़ रहा है।
वैश्विक बाजार में सोने की स्थिति
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी सोने की कीमतों में तेजी देखी जा रही है और यह भारतीय बाजार को प्रभावित कर रही है। वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतें डॉलर में प्रति औंस के हिसाब से तय होती हैं और इसका सीधा प्रभाव भारतीय रुपये में सोने की कीमतों पर पड़ता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति, यूरोपीय केंद्रीय बैंक की नीतियां और चीन की आर्थिक स्थिति सभी सोने की कीमतों को प्रभावित करते हैं।
वर्तमान में केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीदारी भी बढ़ी है जो इसकी कीमतों को समर्थन प्रदान कर रही है। विकासशील देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ा रहे हैं जिससे मांग में वृद्धि हो रही है। तकनीकी विश्लेषण के अनुसार सोने में अभी भी तेजी का रुझान बना हुआ है और यदि वैश्विक अनिश्चितता बनी रहती है तो कीमतों में और भी वृद्धि संभव है।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है और निवेश सलाह का विकल्प नहीं है। सोने की कीमतें बाजार की स्थितियों के अनुसार तेजी से बदल सकती हैं। किसी भी निवेश निर्णय से पहले योग्य वित्तीय सलाहकार से सलाह लें। कमोडिटी बाजार में निवेश जोखिम से भरा होता है। लेखक या प्रकाशक किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।