income tax department: आयकर विभाग की मनमानी पर अब लगाम लग गई है। अब तक आयकर विभाग अपनी मर्जी से किसी भी समय पुराने कर मामलों को दोबारा खोलकर उनकी जांच कर सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसलों तथा संशोधित कानूनी प्रावधानों के बाद अब विभाग को निर्धारित नियमों का सख्ती से पालन करना होगा। यह फैसला उन सभी ईमानदार करदाताओं के लिए राहत की खबर है जो अपना टैक्स सही तरीके से जमा करते हैं लेकिन विभाग की अनावश्यक जांच से परेशान होते रहते थे।
नए कानूनी प्रावधान और बाध्यताएं
आयकर कानून में हुए संशोधन के बाद अब विभाग को रीअसेसमेंट के लिए नए नियमों का कड़ाई से पालन करना होगा। अब कोई भी आयकर अधिकारी अपनी इच्छा के अनुसार किसी करदाता को नोटिस नहीं भेज सकता। आईटीआर फाइल करने के बाद यदि विभाग को लगता है कि किसी मामले की दोबारा जांच की जरूरत है तो उसे पहले से निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा। इससे करदाताओं को अनावश्यक हैरानी और कानूनी झंझटों से छुटकारा मिलेगा और वे अपने व्यापारिक कामकाज पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आयकर कानून की धारा 153-ए के अनुसार रीअसेसमेंट के दौरान कोई भी आयकर अधिकारी बिना पुख्ता सबूत के किसी करदाता की आय में मनमाना इजाफा नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त धारा 147 और 148 के तहत टैक्स मामलों की पुनर्जांच के लिए भी स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह फैसला करदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
समयसीमा में आए बदलाव
पहले आयकर कानून की धारा 148 के तहत विभाग छह साल पुराने मामलों को दोबारा खोल सकता था। लेकिन 2021 के वित्त अधिनियम में धारा 148ए को जोड़ते हुए इसमें महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया। नए नियमों के अनुसार अब सामान्य मामलों में केवल तीन साल तक के पुराने मामले ही दोबारा खोले जा सकते हैं। यह समयसीमा में कमी करदाताओं के हित में एक सकारात्मक कदम है जो उन्हें लंबे समय तक चलने वाली कानूनी अनिश्चितता से मुक्ति दिलाती है।
विशेष परिस्थितियों के लिए अलग नियम
हालांकि नए नियमों में सामान्य मामलों के लिए तीन साल की सीमा तय की गई है, लेकिन गंभीर मामलों के लिए अलग प्रावधान रखे गए हैं। यदि किसी करदाता ने 50 लाख रुपये से अधिक की आय छुपाई है या कोई गंभीर धोखाधड़ी का मामला है तो ऐसी स्थिति में विभाग दस साल तक पुराने मामलों की जांच कर सकता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि बड़े कर चोरों को कानून से बचने का मौका न मिले और साथ ही छोटे करदाताओं को अनावश्यक परेशानी न हो।
दिल्ली हाईकोर्ट का समर्थन
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस मामले में करदाताओं के पक्ष में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि आयकर विभाग तीन साल से अधिक पुराने मामलों में रीअसेसमेंट आदेश जारी नहीं कर सकता। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप है और करदाताओं के अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है। इन न्यायिक फैसलों से यह स्पष्ट हो गया है कि अब आयकर विभाग को संविधान और कानून के दायरे में रहकर ही काम करना होगा।
अस्वीकरण: यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। कर संबंधी मामलों में विशेषज्ञ सलाह लेना आवश्यक है। नवीनतम जानकारी के लिए आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट देखें।