माता-पिता औलाद को प्रोपर्टी से बेदखल कर सकते हैं या नहीं, जानिए सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला Supreme Court Decision

By Meera Sharma

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Supreme Court Decision

Supreme Court Decision: भारतीय समाज में संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद एक आम समस्या बन गई है। विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों और उनकी संतान के बीच होने वाले झगड़े अक्सर न्यायालयों तक पहुंचते हैं। कई बार बुजुर्ग माता-पिता को अपने ही बच्चों द्वारा उपेक्षा और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थितियों में यह सवाल उठता है कि क्या वरिष्ठ नागरिक अपने बच्चों या रिश्तेदारों को संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं। प्रॉपर्टी से जुड़े कानूनों और नियमों की जानकारी का अभाव इस समस्या को और भी जटिल बना देता है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ऐसा ही एक मामला आया जिसमें बुजुर्ग माता-पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने के लिए मुकदमा दायर किया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय को कई महत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं पर विचार करना पड़ा। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इस मुकदमे को खारिज कर दिया लेकिन साथ ही वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश भी दिए। यह निर्णय भविष्य में इसी प्रकार के मामलों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा।

वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 का महत्व

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माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम 60 वर्ष से अधिक उम्र के उन माता-पिता को अधिकार देता है जो अपनी आय या संपत्ति से अपना गुजारा नहीं कर सकते हैं। इस कानून के तहत वे अपने बच्चों या निकटतम रिश्तेदारों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं। यह कानून बच्चों पर अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी डालता है।

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वरिष्ठ नागरिक सम्मानजनक जीवन जी सकें और उन्हें अपने ही परिवार से उपेक्षा का सामना न करना पड़े। इसके अंतर्गत विशेष ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं जो इस प्रकार के मामलों की सुनवाई करते हैं। हालांकि यह अधिनियम सीधे तौर पर माता-पिता को अपने बच्चों को घर से निकालने का अधिकार नहीं देता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐसा किया जा सकता है।

धारा 23 के प्रावधान और संपत्ति स्थानांतरण

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वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संपत्ति स्थानांतरण और भरण-पोषण के बीच संबंध स्थापित करती है। धारा 23(1) के अनुसार कोई भी वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति को यह शर्त रखकर स्थानांतरित कर सकता है कि प्राप्तकर्ता उन्हें बुनियादी सुविधाएं और शारीरिक जरूरतें उपलब्ध कराएगा। यदि यह शर्त पूरी नहीं होती है तो संपत्ति का स्थानांतरण धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत प्रभाव के तहत माना जाएगा। ऐसी स्थिति में ट्रिब्यूनल के पास इस स्थानांतरण को रद्द करने का अधिकार होता है।

धारा 23(2) और भी स्पष्ट रूप से कहती है कि वरिष्ठ नागरिक को अपनी संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। यदि यह संपत्ति पूर्ण या आंशिक रूप से किसी और के नाम स्थानांतरित हो जाती है तो भी यह अधिकार नए मालिक के विरुद्ध लागू हो सकता है। यह प्रावधान वरिष्ठ नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है ताकि वे अपनी संपत्ति देने के बाद भी उचित देखभाल प्राप्त कर सकें।

2020 का महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

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वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक महत्वपूर्ण मामला आया जिसमें बुजुर्ग माता-पिता और उनके बेटे ने अपनी बहू को घर से निकालने की मांग की थी। इस मामले में वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया गया था। प्रारंभ में बैंगलुरु के सहायक आयुक्त ने फैसला दिया था कि संपत्ति माता-पिता की है और बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं है। हालांकि बहू ने इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। न्यायालय ने निर्णय दिया कि घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत बहू को घर से निकाला नहीं जा सकता है चाहे उसका उस घर पर कोई स्वामित्व अधिकार न हो। साथ ही न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल बेदखली का आदेश दे सकता है यदि यह वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण और सुरक्षा के लिए आवश्यक हो।

बेदखली के लिए आवश्यक शर्तें

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि धारा 23(2) में बेदखल करने का अधिकार शामिल है लेकिन यह अधिकार बिना शर्त नहीं है। न्यायालय ने माना कि यदि बच्चे या रिश्तेदार वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करते हैं तो ट्रिब्यूनल उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का आदेश दे सकता है। हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा कि बेदखल करने का आदेश देने से पहले दूसरे पक्ष के दावों और तर्कों पर उचित विचार करना आवश्यक है।

यह निर्णय दर्शाता है कि बेदखली का अधिकार केवल उन स्थितियों में प्रयोग किया जा सकता है जहां वास्तव में वरिष्ठ नागरिक की सुरक्षा और भरण-पोषण को खतरा हो। न्यायालय का यह दृष्टिकोण संतुलित है क्योंकि यह एक तरफ वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और दूसरी तरफ अन्य पारिवारिक सदस्यों के अधिकारों का भी सम्मान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि इस अधिकार का दुरुपयोग न हो सके।

हालिया मामले में न्यायालय का निर्णय

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आए मामले में माता-पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने के लिए मुकदमा दायर किया था। उनका आरोप था कि बेटा उनकी उचित देखभाल नहीं कर रहा है और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है। 2019 में ट्रिब्यूनल ने प्रारंभिक राहत देते हुए बेटे को आदेश दिया था कि वह माता-पिता की अनुमति के बिना घर में दखल न दे और केवल अपनी दुकान और एक कमरे तक सीमित रहे। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा था कि यदि बेटा दोबारा दुर्व्यवहार करता है तो बेदखली की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

इस आदेश से असंतुष्ट होकर माता-पिता ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद बेटे द्वारा माता-पिता को परेशान करने का कोई पुख्ता सबूत नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हर मामले में बेदखली का आदेश देना आवश्यक नहीं है और ऐसे निर्णय केवल अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों में ही लिए जाने चाहिए। यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायपालिका पारिवारिक विवादों को सुलझाने में संयम और विवेक का प्रयोग करती है।

भविष्य के लिए दिशा-निर्देश और सुझाव

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सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि वरिष्ठ नागरिकों के पास अपनी संपत्ति पर अधिकार है और वे विशेष परिस्थितियों में बेदखली का अधिकार भी रख सकते हैं। लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है और इसका प्रयोग केवल वास्तविक आवश्यकता के समय ही किया जाना चाहिए। परिवारों को चाहिए कि वे पारस्परिक संवाद और समझदारी से अपने विवादों को सुलझाने का प्रयास करें। न्यायालय का दरवाजा केवल उन स्थितियों में खटखटाना चाहिए जहां सभी अन्य विकल्प समाप्त हो चुके हों।

यह महत्वपूर्ण है कि समाज में वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सम्मान और देखभाल की भावना को बढ़ावा दिया जाए। साथ ही युवा पीढ़ी को भी अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। संपत्ति संबंधी विवादों से बचने के लिए पारिवारिक नियोजन और स्पष्ट समझौते किए जाने चाहिए। इससे भविष्य में होने वाले विवादों से बचा जा सकता है और पारिवारिक रिश्तों की मधुरता बनी रह सकती है।

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यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। संपत्ति संबंधी किसी भी कानूनी मामले के लिए योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श लेना आवश्यक है। न्यायिक निर्णयों की व्याख्या जटिल हो सकती है और प्रत्येक मामले की परिस्थितियां अलग होती हैं। व्यक्तिगत मामलों में निर्णय लेने से पहले उचित कानूनी सलाह अवश्य लें।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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