Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के तबादले को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो आने वाले समय में हजारों कर्मचारियों को प्रभावित करेगा। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जो कर्मचारी अपनी इच्छा से तबादला मांगते हैं, उन्हें जनहित में हुए तबादले का लाभ नहीं मिल सकता। यह निर्णय सरकारी सेवा में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों के लिए एक नई दिशा निर्धारित करता है और भविष्य में तबादले की नीतियों को प्रभावित करेगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे कर्मचारी अपनी पुरानी सेवा के आधार पर वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकते हैं।
वरिष्ठता में नुकसान की स्थिति
इस फैसले के अनुसार, जो कर्मचारी स्वेच्छा से तबादला लेते हैं, उन्हें नई जगह पर सबसे कनिष्ठ माना जाएगा। यह नियम चाहे वे कितने भी वर्षों से सेवा में हों, लागू होगा। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि नई जगह पर पहले से काम करने वाले कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा करना आवश्यक है। यदि किसी कर्मचारी को वास्तव में जनहित में स्थानांतरित किया जाता है, तो उसकी पुरानी वरिष्ठता बनी रहेगी। लेकिन स्वैच्छिक तबादले में ऐसा नहीं होगा क्योंकि यह कर्मचारी की व्यक्तिगत पसंद है, न कि सरकारी आवश्यकता।
कर्नाटक के मामले की पूरी कहानी
यह फैसला कर्नाटक से आए एक विशेष मामले पर आधारित है। इस केस में एक स्टाफ नर्स ने 1985 में मेडिकल कारणों से फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट के पद पर तबादला मांगा था। मेडिकल बोर्ड ने भी उनकी स्वास्थ्य समस्याओं की पुष्टि की थी। उस नर्स ने लिखित में स्वीकार किया था कि उन्हें नई जगह पर सबसे कनिष्ठ स्थान पर रखा जाए। कर्नाटक सरकार ने 1989 में उनके तबादले को मंजूरी दी और उनकी वरिष्ठता 1989 से गिनी गई। बाद में 2007 में उस नर्स ने इसे अदालत में चुनौती दी और कहा कि उनकी वरिष्ठता 1979 से होनी चाहिए जब वे पहली बार नियुक्त हुई थीं।
निचली अदालतों के फैसले
शुरुआत में कर्नाटक प्रशासनिक न्यायाधिकरण और हाई कोर्ट दोनों ने उस नर्स के पक्ष में फैसला दिया था। इन अदालतों ने ‘स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम के. सीतारामुलु’ के 2010 के मामले का हवाला देते हुए कहा था कि मेडिकल कारणों से हुए तबादले को जनहित में माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसे मामलों में पुरानी वरिष्ठता बनी रहनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को सही नहीं माना और निचली अदालतों के फैसले को पलट दिया।
सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि निचली अदालतों ने गलती की है। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि चूंकि नर्स ने खुद ही तबादले की मांग की थी और नई जगह पर कनिष्ठ स्थान स्वीकार किया था, इसलिए वह अपनी पुरानी नियुक्ति की तारीख से वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकती। अदालत ने यह भी कहा कि यदि ऐसे मामलों में पुरानी वरिष्ठता दी जाए तो नई जगह पर पहले से काम करने वाले कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा। यह फैसला भविष्य में इसी प्रकार के मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा।
कर्मचारियों पर व्यापक प्रभाव
इस निर्णय का सरकारी कर्मचारियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। अब जो भी कर्मचारी व्यक्तिगत कारणों से तबादला मांगेंगे, उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनकी वरिष्ठता प्रभावित हो सकती है। यह फैसला कर्मचारियों को अधिक सोच-समझकर तबादले की मांग करने पर मजबूर करेगा। साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के बीच निष्पक्षता बनी रहे।
अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। कानूनी सलाह के लिए कृपया योग्य वकील से संपर्क करें। लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार की हानि या गलत जानकारी के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।